पृथ्वी की गतियां(Earth Movements)
- पृथ्वी सौरमंडल का एक ग्रह हैं| सौरमंडल का यही एक ऐसा ग्रह है जिस पर जीवन संभव है|
- पृथ्वी की दो गतियां हैं :-
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घूर्णन(Rotation) अथवा दैनिक गति
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परिक्रमण(Revolution) अथवा वार्षिक गति
- घूर्णन अथवा दैनिक गति :-पृथ्वी अपने अक्ष पर पश्चिम से पूरब की तरफ घूमती रहती हैं, जिसे पृथ्वी का घूर्णन या परिभ्रमण कहते हैं| पृथ्वी के घूर्णन गति के कारण ही दिन और रात होते हैं| अतः इस गति को दैनिक गति भी कहते हैं|
- नक्षत्र दिवस(Sideral Day):- एक मध्याह्न रेखा के ऊपर किसी निश्चित नक्षत्र के उत्तरोत्तर दो बार गुजरने के बीच की अवधि को नक्षत्र दिवस(Sideral Day) कहते हैं| इसकी अवधि 23 घंटे 56 मिनट की होती हैं|
- सौर दिवस(Solar Day):- जब सूर्य को गतिहीन मानकर पृथ्वी द्वारा उसके परिक्रमण की गणना दिवसों के रूप में की जाती हैं तो उसे सौर दिवस (Solar Day) कहते हैं| इसकी अवधि पूरी 24 घंटे की होती हैं|
- परिक्रमण अथवा वार्षिक गति:-जब पृथ्वी अपने अक्ष पर घूमने के साथ-साथ सूर्य के चारों ओर एक अंडाकार मार्ग(Geoid) में चक्कर लगाती हैं पृथ्वी के इस अंडाकार मार्ग भू -कक्षा(Earth Orbit) कहते हैं| पृथ्वी की इस गति को परिक्रमण या वार्षिक गति कहते हैं| पृथ्वी अपने अक्ष पर 365 दिन 6 घंटे में एक चक्कर पूरा करती हैं|
- उपसौर(Perihelion):-पृथ्वी जब सूर्य के निकटतम दूरी पर होती हैं तो उपसौर(Perihelion) का कहलाता है| ऐसी स्थिति 3 जनवरी को होती हैं|
- अपसौर(Aphelion):-पृथ्वी जब सूर्य से अधिकतम दूरी पर होती है तो उसे अपसौर(Aphelion) कहते हैं| ऐसी स्थिति 4 जुलाई को होती हैं|
दिन और रात का छोटा व बड़ा होना
- यदि पृथ्वी अपनी धुरी पर झुकी हुई न होती तो सर्वत्र दिन और रात बराबर होते हैं|
- यदि पृथ्वी सूर्य की परिक्रमा न करती तो एक गोलार्ध में दिन सदा ही बड़े और रातें छोटी रहती जबकि दूसरे गोलार्ध में राते बड़ी और दिन छोटे होते|
- विश्वतरेखा के पर दिन और रात की अवधि हमेशा बराबर होते हैं|
- परंतु विश्वतरेखा को छोड़कर विश्व के अन्य सभी भागों में विभिन्न ऋतुओ में दिन रात की अवधि में अंतर पाया जाता है|
- इस प्रकार वृत्त हमेशा दो बराबर भागों में बांटता है| अतः विश्वतरेखा का आधा भाग प्रत्येक स्थिति में प्रकाश प्राप्त करता है|
पृथ्वी पर दिन और रात की स्थिति
- 21 मार्च से 23 सितंबर की अवधि में उत्तरी गोलार्ध सूर्य का प्रकाश 12 घंटे या उससे अधिक समय तक प्राप्त करता हैं | अतः यहां पर दिन बड़े और एवं रात छोटी होती हैं|
- जैसे-जैसे उत्तरी ध्रुव की ओर बढ़ते जाते हैं, दिन की अवधि भी बढ़ती जाती हैं उत्तरी ध्रुव पर तो दिन की अवधि 6 महीने की होती हैं|
- 23 सितंबर से 21 मार्च तक सूर्य का प्रकाश दक्षिणी गोलार्ध में 12 घंटे या उससे अधिक समय तक प्राप्त होता है|
- जैसे-जैसे दक्षिणी ध्रुव की ओर बढ़ते हैं दिन की अवधि भी बढ़ती जाती हैं|
- दक्षिणी ध्रुव पर इसी कारण 6 महीने तक दिन रहता है| इसी प्रकार उत्तरी ध्रुव एवं दक्षिणी ध्रुव दोनों पर ही 6 महीने दिन तथा 6 महीने तक रात रहती हैं|
ऋतु परिवर्तन
- पृथ्वी न केवल अपने अक्ष पर घूमती हैं बल्कि सूर्य की परिक्रमा भी करते हैं| अतः पृथ्वी की सूर्य से सापेक्ष स्थितियां बदलती रहती हैं| पृथ्वी के परिक्रमण में चार मुख्य अवस्थाएं आती हैं तथा इन अवस्थाओं में परिवर्तन से ऋतु परिवर्तन होता है|
- 21 जून की स्थिति:-इस समय सूर्य कर्क रेखा पर लंबवत चमकता है| इस स्थिति को ग्रीष्म अयनांत(Summer Solistice) कहते हैं|
- 21 मार्च के बाद सूर्य उत्तरायण होने लगता है तथा उत्तरी गोलार्ध में दिन की अवधि बढ़ने लगती हैं, जिससे वहां ग्रीष्म ऋतु का आगमन होता है|
- 21 जून को उत्तरी गोलार्ध में दिन की अवधि सबसे अधिक रहती हैं| दक्षिणी गोलार्ध में इस समय से शीत ऋतु होती हैं|
- 21 जून के पश्चात 23 सितंबर तक सूर्य पून: विश्वतरेखा की ओर उन्मुख होता है|
- परिणामस्वरूप धीरे-धीरे उत्तरी गोलार्ध में गर्मी कम होने लगती हैं|
- 22 दिसंबर की स्थिति:- इस समय सूर्य मकर रेखा पर लंबवत चमकता है| इस स्थिति को शीत अयनांत(Winter Solistice) कहते हैं|
- इस समय दक्षिणी गोलार्ध में दिन की अवधि लंबी व रात की अवधि छोटी होती हैं|
- सूर्य के दक्षिणायन होने अर्थात दक्षिणी गोलार्ध में उन्मुख होने की प्रक्रिया 23 सितंबर के बाद प्रारंभ हो जाती हैं, जिससे दक्षिणी गोलार्ध में दिन बड़े व रातें छोटी होने लगती हैं|
- इस समय उत्तरी गोलार्ध में ठीक विपरीत स्थिति देखी जाती हैं| 22 दिसंबर से उपरांत 21 मार्च तक सूर्य पून: विश्वतरेखा की ओर उन्मुख होता है तथा दक्षिणी गोलार्ध में धीरे-धीरे ग्रीष्म ऋतु की समाप्ति हो जाती हैं|
- 21 मार्च व 23 सितंबर की स्थिति:- 21 मार्च एवं 23 सितंबर के स्थितियों में सूर्य विश्वतरेखा पर लंबवत चमकता है|
- इस समय समस्त अक्षांश रेखाओं का आधा भाग सूर्य का प्रकाश प्राप्त करता है।
- अतः सर्वत्र दिन और रात की अवधि बराबर होती है।
- इस समय दिन और रात की अवधि के बराबर रहने एवं ऋतु की समानता के कारण इन दोनों स्थितियों को विषुव (equinox) कहा जाता है।
- 21 मार्च की स्थिति को बसंत विषुव (Spring Equinox) एवं 23 सितंबर वाली स्थिति को शरद विषुव (Autumn Equinox)कहा जाता है।
ज्वार भाटा(Tide)
- सूर्य और चंद्रमा की आकर्षण शक्ति के कारण सागरीय जल ऊपर उठता है तथा नीचे गिर जाता है, इसी को ज्वार भाटा कहा जाता है।
- इससे जो तरंग उत्पन्न होती है उसे ज्वारी अतरंग कहते हैं।
- अलग-अलग जगहों पर ज्वार-भाटा की ऊंचाई में भिन्नता पाई जाती हैं। जो सागर की गहराई, सागरीय तट की संरचना तथा सागर के खुले होने या बंद होने पर आधारित होती हैं।
- सूर्य चंद्रमा से बहुत बड़ा है, तथापि सूर्य की अपेक्षा चंद्रमा के आकर्षण शक्ति का प्रभाव दोगुना होता है। इसका कारण यह है कि सूर्य का चंद्रमा की तुलना में पृथ्वी से बहुत दूर होना।
- 24 घंटे में प्रत्येक स्थान पर दो बार ज्वार भाटा आता है।
- जब सूर्य, पृथ्वी तथा चंद्रमा एक सीधी रेखा में होते हैं तो इस समय उनकी सम्मिलित आकर्षण बल के कारण दीर्घ ज्वार उत्पन्न होता है। यह स्थिति सिजिगी (Syzygy) की कहलाती हैं। दीर्घ ज्वार को पूर्णिमा और अमावस्या को अनुभव किया जाता है।
- जब सूर्य, पृथ्वी एवं चंद्रमा मिलकर समकोण बनाते हैं तो चंद्रमा एवं सूर्य का आकर्षण बल एक-दूसरे के विपरीत कार्यकर्ता हैं। जिसके कारण निम्न ज्वार का अनुभव किया जाता है।
- ऐसी स्थिति कृष्ण पक्ष एवं शुक्ल पक्ष के सप्तमी अष्टमी को देखा जाता है।
- लघु ज्वार सामान्य ज्वार से 20% नीचे व दीर्घ ज्वार सामान्य ज्वार से 20 % ऊंचा होता है।
- पृथ्वी पर चंद्रमा के सम्मुख स्थित भाग पर चंद्रमा की आकर्षण बल के कारण ज्वार आता है, किंतु इसी समय पृथ्वी पर चंद्रविमुखी भाग ज्वार आता है। इसका कारण पृथ्वी के घूर्णन को संतुलित करने के लिए अपकेंद्रीय बल(centrifugal Force) का शक्तिशाली होना है।
गुरुत्वाकर्षण एवं आप केंद्रीय बलों के कारण उत्पन्न ज्वार भाटा
- गुरुत्वाकर्षण व अपकेंद्रीय बलों के प्रभाव के कारण प्रत्येक स्थान पर 12 घंटे के बाद ज्वार आना चाहिए लेकिन यह प्रतिदिन लगभग 26 मिनट की देरी से आता है। इसका प्रमुख कारण चंद्रमा से पृथ्वी के सापेक्ष गतिशील होना हैं।
- ओखा तट पर भारत का सबसे ऊंचा (2.7मी.) ज्वार आता है।
- विश्व का सबसे ऊंचा ज्वार (16-18) कनाडा के नोवास्कोशिया में स्थित फंडी की खाड़ी में आता है।
- साउथैम्पटन में दिन में चार बार ज्वार व भाटा आते हैं। जो कि विश्व के अनोखे घटना है।
चंद्रमा का परिक्रमण और ज्वार-भाटों का अंतराल
- कनाडा के न्यू ब्रंसविक तथा नोवास्कोशिया के मध्य स्थित फंडी की खाड़ी में ज्वार की ऊंचाई सर्वाधिक(15-18 मी.) होती हैं, जबकि भारत के ओखा तट पर मात्र 2.7 मीटर होती हैं।
- इंग्लैंड के दक्षिणी तट पर स्थित साउथैम्पटन में प्रतिदिन चार बार ज्वार आते हैं। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि ये दो बार इंग्लिश चैनल होकर एवं दो बार उत्तरी सागर से होकर विभिन्न अंतरालो पर वहां पहुंचते हैं।
- नदियों को बड़े जलयानों के लिए नौ संचालन योग्य बनाने में ज्वार सहायक होते हैं।
- टेम्स और हुगली नदियों में प्रवेश करने वाली ज्वारीय धाराओं के कारण ही क्रमश: लंदन व कोलकाता महत्वपूर्ण पत्तन बन सके हैं।
- जल विद्युत उत्पादन हेतु भी ज्वरीय ऊर्जा का प्रयोग किया जाता है।
- फ्रांस एवं जापान में ज्वारीय ऊर्जा पर आधारित कुछ विद्युत केंद्र स्थापित किए गए हैं।
- भारत में खंभात की खाड़ी एवं कच्छ की खाड़ी में इसके विकास की अच्छी संभावना है।
ज्वार भाटा के उत्पत्ति की संकल्पनाएं
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न्यूटन का गुरुत्वाकर्षण बल सिद्धांत (1687 ई.)
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लाप्लास का गतिक सिद्धांत (1755 ई.)
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हैव्वेल का प्रगामी तरंग सिद्धांत(1833 ई.)
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एयरी का नहर सिद्धांत (1842 ई.)
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हैरिस का स्थैतीक तरंग सिद्धांत
सूर्यग्रहण और चंद्रग्रहण
- पृथ्वी और चंद्रमा दोनों को प्रकाश सूर्य से मिलता है।
- पृथ्वी से चंद्रमा का एक भाग ही दिखाई देता है, क्योंकि पृथ्वी और चंद्रमा की घूर्णन गति समान है।
- पृथ्वी पर चंद्रमा का संपूर्ण प्रकाशित भाग महीने में केवल एक बार अर्थात पूर्णिमा (Full Moon) को ही दिखाई देता है।
- इसी प्रकार महीने में एक बार चंद्रमा का संपूर्ण अप्रकाशित भाग पृथ्वी पर दिखाई देता है तथा जब चंद्रमा दिखाई नहीं देता; इसे अमावस्या (New Moon) कहते है।
- जब सूर्य पृथ्वी और चंद्रमा एक सरल रेखा में होते हैं तो इस स्थिति को युति – वियुती(Cunjuction) या सिजिगी कहते हैं, जिसमें युति सूर्यग्रहण की स्थिति में व वियुति(Opposition) चंद्रग्रहण की स्थिति में बनते हैं।
- जब पृथ्वी, सूर्य और चंद्रमा के बीच आ जाता है तो सूर्य की रोशनी चंद्रमा तक नहीं पहुंच पाती तथा पृथ्वी की छाया के कारण उस पर अंधेरा छा जाता है इस स्थिति को चंद्रग्रहण(Lunar Eclipse) कहते हैं।
- चंद्रग्रहण हमेंशा पूर्णिमा की रात को होती हैं।
- जब सूर्य एवं पृथ्वी के बीच चंद्रमा आ जाता है तब पृथ्वी पर सूर्य का प्रकाश न पढ़कर चंद्रमा की परछाई पड़े। तो इस स्थिति में सूर्यग्रहण(Solar Eclipse ) होता है।
- सूर्यग्रहण हमेशा अमावस्या को होता है।
- इससे प्रत्येक अमावस्या को सूर्यग्रहण एवं प्रत्येक पूर्णिमा को चंद्रग्रहण लगना चाहिए परंतु ऐसा नहीं होता क्योंकि चंद्रमा अपने अक्ष पर 5 डिग्री झुका हुआ है।
- जब चंद्रमा और पृथ्वी एक ही बिंदु पर परिक्रमण पथ में पहुंचते हैं तो उस समय चंद्रमा अपने अक्षय झुकाव के कारण थोड़ा आगे निकल जाता है। इसी कारण प्रत्येक पूर्णिमा और अमावस्या की स्थिति में ग्रहण नहीं लगता।
- 1 वर्ष में अधिकतम 7 बार चंद्रग्रहण एवं सूर्यग्रहण की स्थिति उत्पन्न हो सकती हैं।
- पूर्ण सूर्यग्रहण देखे जाते हैं परंतु पूर्ण चंद्रग्रहण नहीं देखा जाता, क्योंकि सूर्य, चंद्रमा एवं पृथ्वी के आकार में पर्याप्त अंतर है।
- सूर्यग्रहण के समय अत्यधिक मात्रा में पराबैंगनी(Ultraviolet) किरणें उत्सर्जित होती है। इसलिए आंखों से सूर्य ग्रहण नहीं देखा जा सकता है।
- पूर्ण सूर्यग्रहण के समय सूर्य के परिधीय क्षेत्रों में हीरक विलय (Diamond Ring) की स्थिति बनती है।