ब्रिटिश शासन के प्रति भारतीयों की प्रतिक्रिया। Part-2 (British Shasan ke Prati Bhartiyon ki Prakriya)
BIHAR SCC (BSSC) CGL MOCK TEST PART-9 । BSSC CGL Practice Set । Bihar SSC Free Mock Test । Bihar SSC quiz in Hindi
पूर्वी भारत तथा बंगाल के विद्रोह
अहोम विद्रोह :- (1828-33 ई.)
- अहोम विद्रोह की प्रमुख क्षेत्र असम था।
- इस विद्रोह के प्रमुख नेता गोमधर कुंवर और और रूपचंद्र कोनार थे।
- अंग्रेजों ने यह वचन दिया था कि वे प्रथम बर्मा युद्ध (1824 – 26) के बाद असम से लौट जाएंगे, परंतु इसके विपरीत उन्होंने असम को अपनी कंपनी के शासन के अधीन लाने का प्रयास प्रारंभ कर दिया। जब अंग्रेजों ने अहोम प्रदेश को अपने में शामिल करने का प्रयास किया तो विद्रोह फूट पड़ा।
- 1828 ई. में अहोम लोगों ने गोमधर कुंवर को राजा घोषित कर रंगपुर पर चढ़ाई की योजना बनाई, किंतु विद्रोह सफल ना हो सका। गोमधर ने आत्मसमर्पण कर दिया उसे 7 वर्ष की सजा सुनाई गई।
- एक बार असमियों ने रूपचंद्र कोनार के नेतृत्व में 1837 ई. में विद्रोह की योजना बनाई किंतु कंपनी के अच्छे सैन्य बल के कारण रूपचंद्र कोनार को गिरफ्तार कर लिया गया। इसके पश्चात् कंपनी ने शांति की नीति अपना तथा उत्तरी असम को 1830 ई. में महाराजा पुरंदर सिंह को सौंप दिया गया ।
खासी विद्रोह (1827-33 ई.)
- इस विद्रोह का प्रमुख क्षेत्र मेघालय और असम था।
- खासी विद्रोह के प्रमुख नेता तीरत सिंह थे।
- खांसी लोग मेघालय में फैली जयंतिया तथा गारो पहाड़ियों के बीच निवास करते हैं, जहां उनके अलग-अलग शक्ति संपन्न राज्य थे। बर्मा युद्ध के बाद अंग्रेजों ने इस क्षेत्र पर अधिकार कर लिया।
- ब्रह्मपुत्र नदी घाटी क्षेत्र पर अंग्रेजों ने अपनी आधिपत्य स्थापित किया तथा इस घाटी क्षेत्र को सिलहट से जोड़ने के लिए 1 सैनिक मार्ग की योजना बनाई, जिसके निर्माण के लिए खासी लोगों की जबरन भर्ती की गई, उनमें में असंतोष बढा।
- ब्रिटिश सरकार द्वारा छत्तर सिंह को इस प्रदेश का जमींदार नियुक्त किया गया तथा उन्हें सड़क बनाने की अनुमति प्रदान की गई।
- खांसी मुखिया तीरत सिंह ने इस योजना का तीव्र विरोध किया तथा इस क्षेत्र की जनजातियों – गारो, खंपाटी और सिंहपो की सहायता से विदेशी लोगों को निकालने का प्रयत्न किया।
- 1829- 33 ई. तक 4 वर्षों के दौरान तीरत सिंह ने अपने 10 हजार साथियों के साथ संघर्ष किया।
- 1833 ई. में सैन्य बल प्रयोग न करने तथा मृत्युदण्ड न देने की शर्त पर इन लोगों ने आत्मसमर्पण किया तथा खासी विद्रोह समाप्त हो गई।
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पागलपंथी विद्रोह (1825 – 50 ई.)
- इस विद्रोह का प्रमुख क्षेत्र उत्तर पूर्वी क्षेत्र, बंगाल के क्षेत्र था।
- इस विद्रोह के प्रमुख नेता टीपू मीर थे।
- उत्तरी बंगाल में प्रभावी पागलपंथी विद्रोह एक अर्द्ध-धार्मिक संप्रदाय के द्वारा करमशाह के नेतृत्व में चलाया गया था।
- उत्तर-पूर्वी क्षेत्र में हिंदू,मुसलमान, गारो तथा जांग आदिवासी इस पंथ के समर्थक थे। टीपू (करमशाह का पुत्र) धार्मिक तथा राजनीतिक उद्देश्यों से प्रेरित था।
- जमींदारों द्वारा काश्तकारों पर किए जाने वाला अत्याचार तथा इस क्षेत्र में अंग्रेजों द्वारा संचालित भू राजस्व तथा प्रशासनिक व्यवस्था के कारण व्यापक असंतोष था, जिसने विद्रोह को जन्म दिया।
- 1825 ई. में टीपू ने जमींदारों के अत्याचार के विरुद्ध विद्रोह कर दिया तथा वहां का राजा बन गया। विद्रोहियों ने गारो की पहाड़ियों तक उपद्रव किए तथा यह लगभग एक दशक (1825 – 33 ई.) तक चला, किंतु 1833 ई. में अंग्रेजों इस विद्रोह का दमन कर दिया गया।
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