History of Ancient Bihar in Hindi (प्राचीन बिहार का इतिहास)
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पाषाणयुग में बिहार (Bihar in Stone Age)
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प्रागैतिहासिक काल
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ऐतिहासिक काल
प्रागैतिहासिक काल:–
प्रागैतिहासिक काल से संबंधित आदिमानव के निवास के साक्ष्य बिहार के कुछ स्थानों से लगभग 1 लाख वर्ष पूर्व के मिले हैं। यह साक्ष्य पुरापाषाण काल के हैं। जो नालंदा और मुंगेर जिलों में उत्खनन से प्राप्त हुए हैं इस काल को मुख्यतः तीन भागों में विभाजित किया जा सकता है।
पाषाण काल को मुख्यतः तीन भागों में विभाजित किया गया है:-
- पुरापाषाण काल (Paleolithic Period)
- मध्यपाषाण काल (Mesolithic Period)
- नवपाषाण काल (Neolithic Period)
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पुरापाषाण काल (Paleolithic Period)
- पुरापाषाण काल (Paleolithic Period) :– इस काल के उपकरण बिहार में नालंदा की जेठियन घाटी, गया कि पेमार घाटी, मुंगेर की भीमबांध और पैसरा भागलपुर के राजपोखर एवं मालीजोर तथा पश्चिम चंपारण के बाल्मीकि नगर से प्राप्त हुए हैं। इन स्थलों से प्राप्त पाषाण उपकरणों में कुल्हाड़ी, अस्क, स्क्रेपर (झुरणक), फलक, छुड़ियां, अर्थ चंद्रिका, उत्कीर्णक, छुरी तथा खुरचनी आदि प्रमुख थे। इन उपकरणों का प्रयोग जानवरों का शिकार करने एवं चमड़ा उतारने के लिए किया जाता था। इस समय मानव घुमक्कड़ जीवन व्यतीत करता था तथा प्राकृतिक आवास जैसे पहाड़ी चट्टानों एवं गुफाओं में रहता था।
- मध्य पाषाण काल (Mesolithic Period) :– मध्य पाषाण काल के साक्ष्यों के अंतर्गत मुंगेर जिले से छोटे आकार के पत्थर निर्मित तेज हथियार तथा नोक वाले औजार मिले हैं।
- नवपाषाण काल (Neolithic Period) :- नवपाषाण काल में मानव द्वारा कृषि कार्य आरंभ किए जाने के कारण स्थायी बस्तियों का विकास शुरू हुआ। बिहार में नवपाषाण काल के प्रमुख स्तर वैशाली के चेचर (श्वेतपुर) एवं कुतुबपुर, सारण के चिरांद, पटना के मनेर, रोहतास के सेनुआर, गया के ताराडीह एवं केकर में मिले हैं। सारण के चिरांद से नवपाषाणकालीन अस्थि उपकरण प्राप्त हुए हैं। 1962 ईस्वी में चिरांद में उत्खनन से यह यहां लगभग 2500- 1345 ईस्वी पूर्व के नवपाषाणकालीन अस्थि उपकरण के साथ-साथ काले चित्र मृदभांड भी प्राप्त हुए हैं।
ताम्रपाषाण काल (Chalcolithic Period) :–
ताम्रपाषाण काल में मानव द्वारा सर्वप्रथम धातु के रूप में तांबे का प्रयोग प्रारंभ किया गया। तांबे का प्रयोग पत्थर के साथ किया गया। इसलिए इस युग को ताम्र – पाषाण युग कहा जाता है। ताम्र – पाषाण कालीन संस्कृति के प्रमाण बिहार के सोनपुर(बेलागंज प्रखंड गया), ताराडीह, मनेर (पटना), राजगीर सोनुआर (रोहतास), चिरांद (सारण), चेचर (वैशाली) तथा आरियम (भागलपुर) से प्राप्त हुआ है। इनमें काले और लाल मृदभांड प्रमुख है जो सामान्यत: है 1000 ई. पूर्व से 900 ई. पूर्व तक के माने जाते हैं।
लौह काल(Iron Age):-
1050 ई. पूर्व के आसपास गंगा घाटी में अंतरजीखेड़ा (उत्तर प्रदेश) से लोहा मिलने का प्रमाण मिलता है। इसे उत्तर-वैदिक काल भी कहा जाता है, जिसमें मानवीय बस्तियों का विस्तार गंगा घाटी में उत्तरी बिहार तक हो चुका था। उस समय लोहे का प्रयोग मुख्य रूप से औजार निर्माण में किया जाता था। इसी काल में गांव धीरे-धीरे नगरों में परिवर्तित होने लगे।
प्राचीन बिहार का इतिहास
- बिहार का इतिहास बहुत ही पुराना( प्राचीन) है और भारत में सबसे ज्यादा विविधतापूर्ण में से भी एक हैं| बिहार के पवित्र भूमि पर ही बौद्ध धर्म और जैन धर्म का जन्म हुआ था| बिहार में ही पहले गणतंत्र का उद्भव भी देखा गया था| मगध साम्राज्य के सक्षम संरक्षण में हजारों वर्षों तक प्राचीन बिहार भारत के शक्ति, अधिगम और संस्कृति का केंद्र बना रहा| बिहार शब्द की उत्पत्ति विहार शब्द से हुआ है जिसका अर्थ है बौद्ध भिक्षुओं के विश्रामगृह या भिक्षुकों के विश्राम गृह। हालांकि, यह 12वीं सदी के मुस्लिम आक्रमणकारियों ने इस राज्य को ‘बिहार’ कहना शुरू किया था|
स्रोत:–
- पुरातात्विक साक्ष्यों, साहित्यिक स्रोतों और विदेशी यात्रियों के वर्णन की मदद से बिहार के प्राचीन इतिहास के बारे में जानकारी प्राप्त किया गया है|
- पुरातात्विक साक्ष्यों में बिहार के विभिन्न स्थलों से प्रागैतिहासिक कलाकृतियों का पता लगाया गया है|
- मुंगेर और नालंदा में स्थलों से पुराने पाषाण युग (पुरापाषाण, 1,00,000 ईसा पूर्व) के सबूत खोजे गए हैं|
- मुंगेर के अलावा हाजारीबाघ, रांची, सिंहभूम और संथाल परगना (जो अब सभी स्थान झारखंड में) से मध्य पाषाण युग(मध्य पाषाण युग, 1,00,000-40,000 ईसा पूर्व) की कलाकृतियां खोजी गई हैं|
- चिरांद (सारण) और चेचर (वैशाली) में नव पाषाण युग की कलाकृतियां (नवपाषाण, 2500-1500 ईसा पूर्व) खोज की गई हैं|
- नवपाषाण काल के बाद ताम्रपाषाण युगीन चरण आया। देश के विभिन्न हिस्सों में कई ताम्रपाषाणयुगीन इन स्थलों की खोज की गई हैं, और बिहार के मध्य गंगा मैदान इसका अपवाद नहीं है|
- महत्वपूर्ण स्थलों में चिरांद (सारण), मुंगेर, पटना, ओरीप और चंपा (भागलपुर), चेचर- कुतुबपुर (वैशाली), सोनपुर और ताराडीह (गया) शामिल है|
- मौर्य काल (321-185 ईसा पूर्व) के पुरातात्विक अवशेष 80 खंभे वाले पत्थरों के खंडहर सहित कुम्हरर (पटना) में स्थित हैं। सभी खंभे काले चित्तीदार बदामी रंग के बलुआ पत्थर मोनोलिथ से बने थे, जिसमें उज्जवल चमक थी|
- मौर्य काल के संदर्भ स्तंभ शिलालेख लैरिया, नंदनगढ़ और रर्नपुरवा (दोनों पश्चिम चंपारण) में और लौरिया अरेराज (पूर्वी चंपारण) में खोजे गए हैं।
- वैशाली में गुप्त काल के कई मोहरें और सिक्के मिले हैं। विभिन्न साहित्यिक स्रोत बिहार के प्राचीन इतिहास के बारे में जानकारी देते हैं।
- शतपथ ब्राह्मण (800 ईसा पूर्व) के अनुसार, गंगा के घाट के अलावा यहां आर्य सभ्यता अच्छी तरह से स्थापित थी।
- अथर्ववेद और पंचवेश ब्राह्मण ने प्राचीन बिहार में भटकते तपस्वियों को वर्तियों के रूप में संदर्भित किया। ऋगवेद बिहार में किकट नाम के एक क्षेत्र में अछूत लोगों के बारे में बात करता है।
- पुराण, रामायण और महाभारत भी बिहार का अच्छा विवरण प्रस्तुत करते हैं।
- अभिधम्म पिटक, विनायपिटक और सुतापिटक जैसे बौद्ध साहित्य में बिहार के बारे में उल्लेख हैं। अंगतार निकाय में महाजनपदों का उल्लेख किया गया है।
- 16 महाजनपदों में से मगध को सबसे मजबूत बताया गया है।
- दीघा निकाय, दीपवंश और महावंश भी क्षेत्र के इतिहास का अच्छा विवरण प्रस्तुत करते हैं। भद्रबाहु के कैपसूत्र जैसे जैन साहित्य में चौथी शताब्दी के बिहार का उल्लेख मिलता है। परिशिष्ट वर्णन और वासुदेव चरित चंद्रगुप्त मौर्य के प्रारंभिक जीवन के इतिहास के बारे में जानकारी देता है।
- विदेशी यात्रियों के यात्रा वृतांत भी हैं, जो बिहार के प्राचीन इतिहास का अच्छा जानकारी प्रदान करते हैं।
- विदेशी यात्री मेगस्थनीज (350 – 290 ईसा पूर्वी) ने चंद्रगुप्त मौर्य के शासनकाल में भारत का भ्रमण किया था। मेगस्थनीज ने अपनी पुस्तक इंडिका में मौर्य शासन को विस्तार से बताया है।
- फा-हेयन (337-422 ई.) ने 5वीं शताब्दी के दौरान भारत का दौरा किया था और मगध का वर्णन किया।
- हर्ष के शासन काल (606 – 647 ईस्वी) के दौरान 637 ईस्वी में आए ह्यून त्सांग नालंदा के महान मठ को संदर्भित करते हैं। जहां उन्होंने अपना अधिकांश समय बिताया।
- चीनी यात्री आई-त्सिंग ने भी नालंदा और आसपास के बारे में अपनी पुस्तक में वर्णन किया है।
Ancient History of Bihar in Hindi
बिहार में आर्यों का आगमन
- बाद के वैदिक काल (1000 – 600 ईसा पूर्व) में आर्यों ने पूर्वी भारत की ओर बढ़ना शुरू कर दिया। प्राचीन ब्राह्मण ग्रंथों में बिहार के राजाओं के नामों का उल्लेख मिलता है।
- शतपथ ब्राह्मण आर्यों के आगमन और प्रसार के बारे में उल्लेख करता है। वराह पुराण में टिकट को अशुभ स्थान के रूप में उल्लेख किकट को अशुभ स्थान के रूप में उल्लेख किया गया है जबकि गया के पुनपुन, राजगीर को शुभ स्थान के रूप में बताया गया है।
महाजनपद(Mahajanpad)
- बौद्ध और जैन साहित्य के अनुसार, बाद के वैदिक युग में कई छोटे राज्यों या शहर में मगध का प्रभुत्व था।
- 500 ईसा पूर्व तक, भारत – गंगा के मैदान जो आधुनिक अफगानिस्तान से बंगाल और महाराष्ट्र तक फैले 16 ‘राजतंत्र’ और ‘गणतंत्र’ – कासी, कोसल, अंग, मगध, वज्जी (वरिजी), मल्ला, चेडी, वत्स (या वामसा), कुरू, पांचाल,मत्या, सुरसेन, अशका, अवंती, गांधरा, कंबोज को महाजनपदों के रूप में जाना जाता था।
- 16 महाजनपदों में से तीन महाजनपद, मगध, अंग, वज्जी बिहार में थे। 16 राज्यों में से कई ने 500/400 ईसा पूर्व में चार प्रमुख राज्यों के साथ गठबंधन किया था जो कि सिद्धार्थ गौतम के समय तक है। ये 4 वत्स, अवंती, कोसल और मगध थे।
अंग राज्य(angrajya) :–
- अथर्ववेद में पहली बार इसका उल्लेख मिलता है। इस महाजनपद में वर्तमान समय के खगड़िया, भागलपुर और मुंगेर शामिल हैं। यह मगध के उत्तर-पूर्व में स्थित था।
- चंपा इस राज्य की राजधानी थी जो वर्तमान बिहार के भागलपुर का चंपानगर ही थी। चंपा का पूर्व नाम मालिनी था, जिसकी स्थापना महागोविंद ने की थी।
- चीनी यात्री ह्यून त्सांग ने इसे चेनांपो के रूप में संदर्भित किया है।
वज्जी / वरिजी राज्य(vjji/variji rajya):–
- वज्जी महाजनपद में कुल 8 कुल शामिल थे और यह राज्य सांस्कृतिक और राजनीतिक गतिविधियों का एक महत्वपूर्ण केंद्र बन गया। वज्जी महाजनपद उतरी भारत में स्थित था।
- 8 कुलो में से लिच्छवी, विदेह और वज्जी सबसे महत्वपूर्ण थे। वज्जी की राजधानी वैशाली में स्थिति थी। लिच्छवियों का एक स्वतंत्र कबीला था और आर्यों से अलग थे।
- वैशाली के कुड़ग्राम के ज्ञानी भी इस संघ के सदस्य थे। महावीर जैन जनत्रिका थे। उनके पिता जनत्रिका कबीले के प्रमुख थे। और उनकी मां लिच्छवी राजकुमारी थी।
विदेह राज्य(videh rajya):–
- विदेह राज्य का उल्लेख रामायण और महाभारत दोनों में बिहार के कुछ हिस्सों को मिलाकर नेपाल के छोटे-छोटे हिस्सों के रूप में किया गया है। यजुर्वेद में पहली बार इसका जिक्र किया गया है।
- इस राज्य शुरुआत इक्ष्वाकु के बेटे निमी विदेह ने की थी।
- अगले राजा मिथिजनक विदेह ने मिथिला की स्थापना की थी। इसके बाद इस राज्य के सभी राजाओं को जनक कहा जाने लगा।
- हिंदू देवी सीता विदेह की राजकुमारी थी। और वे विदेह के राजा जनक की पुत्री थी।
- विदेश राज्य की राजधानी जनकपुर अब नेपाल का हिस्सा है। बृहदारण्यक उपनिषद के अनुसार, राजा जनक ने वैदेही में एक प्रतियोगिता का आयोजन किया था, जिसे यज्ञवलक्या ने जीता था। इस राज्य के अंतिम राजा राजा कराल थे। इसके बाद इसमें गिरावट आने लगी।
लिच्छवी (वैशाली)(Lichchhivi):–
- लिच्छवी, वज्जी संघ का सबसे महत्वपूर्ण और शक्तिशाली कबीले था।
- यह गंगा के उत्तरी तट पर स्थित था, जो वर्तमान बिहार और नेपाल के कुछ क्षेत्रों में फैला हुआ था, इसकी राजधानी वैशाली में थी। महाभारत काल में इस शहर का नाम राजा विशाल के नाम पर रखा गया था।
- यह बौद्ध धर्म का एक महत्वपूर्ण केंद्र और वज्जी गणराज्य का मुख्यालय था। भगवान महावीर का जन्म वैशाली के कुंडग्राम में हुआ था।
- पाणिनी ने वज्जी के लिए ‘वृज’ शब्द का इस्तेमाल किया लेकिन लिच्छिवियों के बारे में उल्लेख नहीं किया। विभिन्न जैन साहित्य में भी लिच्छिवियों का वर्णन है।
- वैशाली को दुनिया का पहला गणतंत्र माना जाता है और इसमें प्रतिनिधियों की निर्वाचित विधानसभा थी। मगध के साथ लिच्छिवियों ने प्रशासन की एक प्रणाली तैयार की, जिसने राज्य शिल्प की आधुनिक कला का बीज बोया।
- कौटिल्य ने अपने अर्थशास्त्र में लिच्छिवियों के आदिवासी परिसंघ का उल्लेख किया है। बौद्ध ग्रंथ महापरीनीबना सुतांता लिच्छिवियों को क्षत्रियों के रूप में संदर्भित करता है, जबकि मनुस्मृति ने उन्हें वर्तया क्षत्रियों की श्रेणी में रखा है।
- भगवान महावीर का की माता त्रिशला लिच्छवी के राजा चेतक की बहन थीं। गुप्त सम्राट चंद्रगुप्त प्रथम ने एक लिच्छवी राजकुमारी कुमारादेवी से विवाह किया था। आम्रपाली वैशाली की मशहूर नृतकी और शाही गणिका थी ।
- लिच्छवी चौथी शताब्दी ईसा पूर्व तक उत्तरी भारत और नेपाल में प्रभावशाली बने रहे। जैसे- जैसे समय बीतता गया वैसे- वैसे लिच्छवियों के राज्य को मगध के राजा अजातशत्रु ने जीत लिया।
Ancient History of Bihar for BPSC
मगध राज्य:–
मगध राज्य का अथर्ववेद में पहली बार इसका उल्लेख मिलता है। यह बुद्ध काल में एक मजबूत गणराज्य था, जो बाद में एक मजबूत राज्य बन गया।
इसका क्षेत्र उत्तर में गंगा से दक्षिण में विंध्य और पूर्व में चंपा तक पश्चिम में सोन नदी तक फैला हुआ था। पहले राजधानी गिरीवराजा या राजगीर थी, जो 5 पहाड़ियों से चारों तरफ से गरी हुई थी। बाद में राजधानी पाटलिपुत्र (पटना) स्थानांतरित हो गई।
मगध साम्राज्य में कोसल, वत्स और अवंती शामिल थे। यह भारत की महाशक्ति बन गई और इस तरह इसका इतिहास भारत का इतिहास बन गया।
- भारत के दो महानतम साम्रराज्य मौर्य साम्राज्य और गुप्त साम्राज्य की उत्पत्ति मगध में हुई थी। दोनों साम्राज्य ने प्राचीन भारत के विज्ञान, गणित, खगोल विज्ञान, धर्म और दर्शन में प्रगति।
बिहार में बौद्ध धर्म (Buddhism in Bihar)
- बौद्ध धर्म के संदर्भ में बिहार को सबसे पवित्र भूमि माना जाता है| यहीं पर सिद्धार्थ गौतम बुध को आत्मज्ञान के दिव्य ज्योति की प्राप्ति हुई थी| उन्होंने बिहार के अलग-अलग स्थानों पर अपने कई उपदेश दिया|
- गौतम बुध का जन्म 563 ईसा पूर्व में शाक्य नामक क्षत्रिय कुल में कपिलवस्तु के निकट नेपाल के तराई में अवस्थित लुम्बिनी में हुआ था|
- महात्मा बुध के पिता का नाम शुद्धोधन था और वे शाक्य गण के प्रधान थे। तथा उनकी मां का नाम महामाया था| यशोधरा उनकी पत्नी का नाम था| और उनके पुत्र का नाम राहुल था|
- गौतम बुध के जन्म के सातवें दिन माता की मृत्यु होने के कारण इनका पालन-पोषण की उनकी मौत प्रजापति गौतमी ने किया।
- महात्मा बुद्ध ने सत्य की खोज में 29 वर्ष की उम्र में अपना घर त्याग दिया था| इसे “महाभिनिष्क्रमण” के नाम से जाना जाता है|
- 35 वर्ष की आयु में उरूवेला (बोधगया) में वैशाख पूर्णिमा की रात्रि को निरंजना नदी के तट पर एक पीपल के वृक्ष के नीचे गौतम बुद्ध को ज्ञान प्राप्त हुआ।
- ‘ज्ञान’ प्राप्ति के बाद वह ‘बुद्ध’ कहलाए।
- ज्ञान प्राप्ति के बाद वे वाराणसी गए तथा अपना पहला उपदेश सारनाथ में दिया, जिसे धर्मचक्रप्रवर्तन करते हैं।
- उन्होंने वैशाली में अपना अंतिम उपदेश दिया और परिनिर्वाण की भी घोषणा की|
- कुशीनगर में 483 ईसा पूर्व में 80 वर्ष की अवस्था में उन्होंने शरीर त्याग दिया। बौद्ध ग्रंथों में इसे ‘महापरिनिर्वाण’ कहा जाता है।
- बुद्ध का ‘महापरिनिर्वाण’ मल्ल की राजधानी कुशीनगर में हुआ।
बुद्ध के जीवन से संबंधित बौद्ध धर्म के प्रतीकघटना प्रतीक जन्म कंबल एवं सांड गृहत्याग घोड़ा ज्ञान पीपल(बोधिवृक्ष) निर्वाण पद चिन्ह मृत्यु महापरिनिर्वाण स्तूप |
- प्रसिद्ध बौद्ध भिक्षु, सारिपुत्र नालंदा में पैदा हुए थे। बिहार में अलग-अलग स्थानों पर चार में से तीन बौद्ध परिषद आयोजित की गई|
- प्रथम बौद्ध परिषद का आयोजन राजगृह (राजगीर) से में अजातशत्रु के संरक्षण में भिक्षु महाकश्यप की अध्यक्षता में किया गया था। परिषद ने बौद्ध के शिक्षण (सुत्ता) और शिष्यों के नियमों (विनय) को संरक्षित करने के तरीके के बारे में विचार-विमर्श किया|
- दूसरी बौद्ध परिषद (383 ईसा पूर्व) राजा कालसोक के संरक्षण और सबकामी की अध्यक्षता में वैशाली में आयोजित की गई थी। इस परिषद का विचार अनुशासन संहिता के विनय पिटक पर विवाद का निपटारा करना था। विवाद 10 बिंदुओं पर था और इसे सुलझाया नहीं जा सका। यहां पहली बार बौद्ध धर्म के संप्रदाय दिखाई दिए|
- तीसरी बौद्ध परिषद (250 ई. पूर्व) का आयोजन पाटलिपुत्र में अशोक के संरक्षण में और मोगलीपुर्ता तिस्सा की अध्यक्षता में हुआ। बुद्ध की शिक्षा, जो दो पिटको में थी, अब तीन पिटक में वर्गीकृत की गई क्योंकि अभिधम्म पिटक इस परिषद में स्थापित किया गया था। इसने विनय पिटक के विवाद को निपटाने की भी कोशिश की|
- चौथी बौद्ध परिषद कश्मीर के कुंडलवन में आयोजित की गई, जो कुषाण राजा कनिष्क के अधीन था|
- चौथी संगीति के समय बौद्ध धर्म हीनयान और महायान नामक दो संप्रदायों में विभाजित हो गया। हीनयान वस्तुतः स्थविरवादी तथा महासांघिक थे।
बिहार में जैन धर्म
- जैन धर्म एक और महान विश्व धर्म है जो बिहार की पवित्र भूमि के लिए अपनी उत्पति का चिन्ह दर्शाता है। अवशेष 24 के तीर्थंकरों के माध्यम से अपने इतिहास का पता लगाते हैं, ऋषभनाथ पहले तीर्थंकर थे, और पार्श्वनाथ 23वें तीर्थंकर थे, जबकि महावीर 24 वें और अंतिम तीर्थंकर थे|
- महावीर का जन्म वैशाली (वर्तमान में बिहार का 1 जिला) के कुंडग्राम में 540 ईसा पूर्व(कहीं-कहीं 599 ईसा पूर्व ) में हुआ था। वे ज्ञातृक क्षत्रिय कुल के थे। उनके पिता का नाम सिद्धार्थ था जो ज्ञातृक क्षत्रियों के संघ के प्रधान थे। और मां का नाम त्रिशला थी। त्रिशला लिच्छवी की राजकुमारी थी। त्रिशला लिच्छवी नरेश चेतक या चेटक की बहन थी। वर्धमान महावीर ने 30 साल की उम्र में घर त्यागी और और 12 वर्ष की कठोर तपस्या के बाद जृम्भिक ग्राम के निकट ऋजुपालिका नदी के तट पर एक साल वृक्ष के नीचे इन्हें कैवल्य (ज्ञान) प्राप्त हुआ। और 42 साल की उम्र में “कैवल्य” हासिल कर लिया|
- महावीर स्वामी की पत्नी का नाम यशोदा था और उनकी पुत्री का नाम प्रियदर्शनी या प्रियदर्शना था।
- महावीर स्वामी का प्रथम अनुयायी जमाली था। जमाली महावीर स्वामी का दामाद भी था।
- कैवल्य के माध्यम से उन्होंने दुख और सुख पर विजय प्राप्त की और उन्हें जीना या महावीर के नाम से जाना जाने लगा। जैन धर्म के अनुसार सबसे महत्वपूर्ण मानव प्रयास मोक्ष या निर्वाण की प्राप्ति हैं|
- मोक्ष प्राप्त करने के लिए 3 जवाहर या रत्न है सही विश्वास, सही आचरण और सही ज्ञान।
- महावीर स्वामी ने कोसल, मिथिला, चंपा, मगध आदि महाजनपदों में 30 वर्षों तक जैन धर्म का प्रचार किया 72 वर्ष की आयु में महावीर स्वामी की मृत्यु हो गई।
- महावीर ने राजगृह (राजगीर) के पास पावापुरी में 468 ईसा पूर्व (कहीं-कहीं 527 ई. पूर्व) में निर्वाण प्राप्त किया।
- जैन धर्म में 2 परिषदों का आयोजन किया गया है। पहली परिषद पाटलिपुत्र में तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व के शुरुआत में स्थूलाभद्र द्वारा आयोजित की गई थी। यहां जैन धर्म दो संप्रदायों में बटा हुआ था:- श्वेतांबर और दिगंबर|
श्वेतांबर एवं दिगंबर में अंतरश्वेतांबर (तेरातेरापंथ)
दिगंबर (समैया)
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- दूसरी परिषद देवाधी क्षमसरमण के नेतृत्व में पांचवीं शताब्दी में वल्लभी में आयोजित की गई थी और इसके परिणामस्वरूप 12 अंगों और 12 उपांगों का अंतिम संकलन हुआ।
जैन धर्म के सिद्धांत (Theory of Jainism)
जैन धर्म के पांच महाव्रत है:-
- अहिंसा (हिंसा नहीं करना)
- सत्य (झूठ नहीं बोलना)
- अस्तेय (चोरी नहीं करना)
- अपरिग्रह (संपत्ति अर्जित नहीं करना)
- ब्रह्मचार्य (इंद्रियों को वश में करना)
General Science Mock Test In Hindi
हेलो दोस्तो,
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