Inflation Kya Hota Hai | Inflation In Hindi | what is inflation in hindi | Economic class Part -1(Inflation)

Inflation (मुद्रास्फीति)

Inflation Kya Hota Hai

  • Inflation (मुद्रास्फीति):- मुद्रास्फीति ऐसी स्थिति है जिसे वस्तुओं की सामान्य कीमतों में निरंतर एवं अनियंत्रित वृद्धि तथा मुद्रा की कार्य शक्ति में गिरावट आती है और जब यह घटना लंबे समय तक अवलोकन की जाती हैं तो ऐसी स्थिति को मुद्रास्फिति के रूप में अभीलक्षित की जाती हैं।

Deflation(अपस्फीति) | Deflation in Hindi

  • Deflation(अपस्फीति):-  अपस्फिति वही स्थिति है जिसमें वस्तुओं की समग्र कीमतें कम हो जाती हैं और मुद्रा की कार्य शक्ति में उच्च वृद्धि होती हैं, जिसे नकारात्मक मुद्रास्फीति स्थिति उत्पन्न हो जाती हैं जिसे अपस्फिति के रूप में जाना जाता है। 

Reflation (पुनर्मुद्रास्फिति संस्फिति)

  • Reflation (पुनर्मुद्रास्फिति संस्फिति):- यह सरकार द्वारा अपनाई गई एक सुविचारित नीति हैं, ऐसे समय में जब अर्थव्यवस्था गिरावट या मंदी के दौर से गुजर रही हो तब देश में मुद्रा आपूर्ति को बढ़ाकर या देश में करो को कम करके अर्थव्यवस्था को वापस पटरी (ट्रैक) पर लाने का प्रयास संस्फीति द्वारा किया जाता है। 

Disinflation(अवस्फीति )

  • अवस्फीति का तात्पर्य है कि मुद्रास्फीति की दर में गिरावट की स्थिति या हम कह सकते हैं कि जब किसी देश में वस्तुओं और सेवाओं की सामान्य कीमतों की वृद्धि की दर में गिरावट है।

मंदी(Recession)

  • यह एक प्रकार की स्थिति हैं जब किसी देश में वस्तुओं की सामान्य कीमतें घट जाती हैं और मुद्रा की क्रिया शक्ति बढ़ जाती हैं और दूसरी ओर बाजार में तरलता का अभाव होता है, इस स्थिति को मंदी के रूप में जाना जाता है। अर्थव्यवस्था के क्षेत्र जो मंदी के दौरान सबसे अधिक प्रभावित होते हैं, वे हैं रियल एस्टेट, बीमा, बैंकिंग, आई.आई.टी आदि।

मुद्रास्फीतिजनित मंदी

  • ऐसी स्थिति जहां किसी देश में मुद्रास्फीति के साथ-साथ मंदी दोनों सह-अस्तित्व एक ही समय में हो तथा उस देश में बेरोजगारी भी व्याप्त हो इस स्थिति को मुद्रास्फीतिजनित मंदी स्टैगफ्लेशन के रूप में जाना जाता है।
Economic class Part -1(Inflation)


BIHARGOVTJOBS.IN

मूल मुद्रास्फीति

  • इसका अर्थ है मुद्रास्फीति जिसे हर वस्तुओं एवं इंधन उर्जा में विचार नहीं किया जाता है।

Trends in CPI-C Headline, core and Food Inflation

what is inflation in hindi

द्रुत मुद्रास्फीति

  • यह ऐसी स्थिति हैं जब किसी देश में मुद्रास्फीति की दर इतनी बढ़ जाती है कि उस देश की जनता अपने देश की मुद्रा में विश्वास खो देते हैं तब सरकार वैकल्पिक मुद्रा का उपयोग करने या अंत में वस्तु विनियम प्रणाली के अंतरण बारे में विचार कर सकते हैं।

मुद्रास्फीति का मापन

  • भारत में मुद्रास्फीति को मासिक आधार पर डब्ल्यू.पी आई.(WPI) एवं सी.पी.आई.(CPI) के आधार पर मापा जाता है।

थोक मूल्य सूचकांक (wholesale price index-WPI)

  • इसे हैडलाइन मुद्रास्फीति भी कहा जाता है।
    • इसे उद्योग संवर्धन और आंतरिक व्यापार विभाग द्वारा तैयार किया जाता है।
    • 697 वस्तुएं -आधार वर्ष 2011 से 12
    • डब्ल्यू. पी. आई.(WPI) में सेवाएं शामिल नहीं होती हैं।
Inflation Kya Hota Hai, what is inflation in Hindi
Inflation Kya Hota Hai | what is inflation in Hindi

उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (consumer price index – CPI)

  • भारत के प्रमुख खुदरा बाजारों से खुदरा एकत्र किए गए आंकड़ों के आधार पर सी.पीआई.(CPI) एन. एस. ओ (NSO) द्वारा निर्मित की जाती है।
  • ग्रामीण क्षेत्र – 448 वस्तुएं, शहरी क्षेत्र 460 वस्तुएं
  • आधार वर्ष: 2012 एवं सी.पी.आई(CPI) में सेवाएं शामिल की जाती है।
  • यह सूचकांक पांच प्रमुख वस्तुओं के समूहों पर आधारित होती हैं।
  • समूह l: खाद्य एवं पेय पदार्थ (46%)
  • समूह ll: वस्त्र एवं जूते (6.5%)
  • समूह lll: आवास (10%)
  • समूह lV: इंधन एवं बिजली (7%)
  •  समूह V: तंबाकू, पान एवं अन्य नशीले पदार्थ(2.4%)
  • विविध समूह: स्वास्थ्य, शिक्षा, परिवहन आदि(28%)
  • खाद्य पदार्थों के मूल्य बेमौसम बारिश एवं बाढ़ जैसी स्थिति के बाद बढी।
  • डब्ल्यू.पी.आई. में गिरावट अर्थव्यवस्था में मांग के दबाव को कमजोर होना दर्शाता है।

सी.पी.आई.(CPI) तथा डब्ल्यू.पी.आई.(WPI) के बीच विचलन

  1. सूचकांकों की संरचना 
  2. खाद्य सामग्रियों की भरिता 
  3. सेवाओं का समावेशन/अपवर्जन 
  4. उपभोक्ता मूल्य एवम् थोक मूल्य

 उत्पादक मूल्य सूचकांक

  • बी.एन गोलधर द्वारा अनुशंसित
  • उद्देश्य:- उत्पादक अपने स्तर पर स्वयं सुधारात्मक उपायों को अपनाता है जब मूल्य बढ़ने लगती हैं ताकि उपभोक्ता तक पहुंचने से पहले ये उपाय बढ़ते मूल्य के प्रभाव को कम कर सके।

सेवा मूल्य सूचकांक

  • सी.पी चंद्रशेखर समिति द्वारा अनुशंसित।
  • यह सी.एस.ओ. द्वारा 4 सेवाओं के लिए प्रायोगिक आधार पर विकसित किया जा रहा है ये सेवाएं है:- रेलवे, डाक, दूरसंचार एवं बैंकिंग क्षेत्र।

 जी. डी. पी.(GDP) अपस्फितिकरक

  • यह किसी अर्थव्यवस्था में, चालू वर्ष में उत्पादित सभी अंतिम वस्तुओं और सेवाओं के मूल्यों में बदलाव करने का एक उपाय हैं।

जी. डी. पी.(GDP) अपस्फितिकरक=(अवास्तविक (नॉमिनल) वास्तविक जी.डी.पी.)*100

  • यह अनुपात यह दर्शाता है कि सकल घरेलू उत्पाद में वृद्धि उत्पादन में वृद्धि के बजाय उच्च मूल्यों कारण हुई हैं।

मुद्रास्फीति के कारण

  • अर्थव्यवस्था को समझने के लिए दो बिंदु हैं, एक उत्पादन के स्तर पर, और दूसरा उपभोक्ता के स्तर पर हैं, अर्थात, उपभोक्ता के स्तर पर,उत्पादों के मूल्यों में मुद्रास्फीति के लिए, यह दोनों ही कारक उत्तरदायी हो सकते हैं।

सर्वप्रथम, उत्पादन स्तर के आधार पर मुद्रास्फीति के कारण:-

  • उत्पादन की लागत में वृद्धि (इनपुट मजदूरी आदि)/ वितरण (संवहन लागत) और
  • आपूर्ति श्रृंखला का टूटना, उदाहरण के लिए, आउटपुट का अपक्षय (जैसे टमाटर या अन्य कृषि उत्पाद) इन्हें कारक लागत-जन्य कारकों के रूप में जाना जाता है।

उपभोक्ता स्तर पर: –

  • यहां पर केवल एक कारक क्रियाशील है, अर्थात, मांग की मात्रा में वृद्धि। यह वृद्धि कई कारकों का परिणाम होते हैं जो अंततः उत्पादों के मूल्य में वृद्धि का कारण बनती है। मूल्यों में इस तरह की मुद्रास्फीति को मांग जन्य मुद्रास्फीति के रूप में जाना जाता है।
  • आज की गतिशील दुनिया में, यह दोनों कारक मुद्रास्फीति की ओर अग्रसर है। लेकिन रोजगार के निम्न स्तर और संबंधित कम मजदूरी के वर्तमान भारतीय परिदृश्य को देखते हुए, मुद्रास्फीति के लिए एक मुख्य कारक लागत जन्य है।

मांग जन्य मुद्रास्फीति के कारक/कारण

  • जनसंख्या में वृद्धि:- जैसे-जैसे जनसंख्या बढ़ती जाती है, वैसे-वैसे भोजन के लिए लोग बढ़ जाते हैं, जिसे उत्पादन की मांग में वृद्धि होती हैं।
  • आय और मजदूरी में वृद्धि:- जब सुलभ आय में वृद्धि होती हैं, तो उत्पादों का उपभोग भी बढ़ जाता है जिससे मांग की मात्रा में वृद्धि होती है।
  • उपभोग के प्रतिमानों में परिवर्तन:- समय के साथ, किसी भी देश के लोगों की जीवनशैली में परिवर्तन का मार्ग आगे चलता है, जैसे, भारतीय लोगों का भोजन कार्बोहाइड्रेट युक्त से प्रोटीन युक्त में परिवर्तित हो गया है। इस बदलाव के परिणामस्वरुप इन नई पसंदीदा वस्तुओं की मांग बढ़ गई हैं।
  • काला धन:- भारतीय रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति का उद्देश्य अर्थव्यवस्था में मुद्रा आपूर्ति की मात्रा सुनिश्चित करना है, लेकिन एक निश्चित राशि जो आधिकारिक रिकॉर्ड से बाहर हैं, और बाजार में चलयमान है, जिसे वास्तविक मुद्रा आपूर्ति में वृद्धि होती हैं। इसलिए अधिक मात्रा में मुद्रा, सीमित वस्तुओं का अनुसरण करना शुरू कर देती हैं जिसके परिणामस्वरूप मांग आधारित मुद्रास्फीति होती हैं।
  • राजकोषीय घाटे के कारण मुद्रा की आपूर्ति में वृद्धि:- राजकोषीय घाटा सरकार की उधार आवश्यकताओं को दर्शाता है। सरकार के खर्च का अधिकांश भाग राजस्व व्यय पर आधारित हैं, जिसमें सब्सिडी, प्रशासनिक व्यय, रक्षा व्यय आदि शामिल है। इन सभी व्ययों से परिसंपत्तियों का निर्माण नहीं होता है, और इस तरह, इस वर्धित व्यय से अर्थव्यवस्था में धन की आपूर्ति बढ़ जाती हैं। इससे आय के स्तर में भी वृद्धि होती हैं, जिसके परिणामस्वरूप वस्तुओ की मांग बढ़ जाती हैं।
  • सरकार के व्यय में वृद्धि:- सरकार को शासन के उद्देश्यों की पूर्ति के लिए विभिन्न उत्पादों की आवश्यकता होती है। इसके लिए, सरकार विभिन्न उत्पादों के उपभोक्ता के रूप में कार्य करते हैं और अर्थव्यवस्था में उपभोग को बढ़ाती हैं। परिणामस्वरूप, सरकार कुल मांग में वृद्धि करती हैं,जिससे मांग जन्य मुद्रास्फीति में वृद्धि होती हैं।
  • विदेशी मुद्रा भंडार में वृद्धि:- भारतीय रिजर्व बैंक विदेशी मुद्रा भंडार को बनाए रखता है। भारतीय रिजर्व बैंक के विदेशी मुद्रा कार्य करने से बाजार में रुपया आता है, जिससे घरेलू मुद्रा की तरलता बढ़ती हैं। बाजार में अधिक मुद्रा, बाजार में अधिक मांग को जन्म देते हैं।

लागत जन्य कारक/कारण

  • आधारभूत संरचना की व्याधियां:- अवसंरचना की कमी, अवसंरचनात्मक संरचना की मजबूती में अधिक निवेश करने के लिए उत्पादकों को मजबूर करती हैं। इससे प्रति-इकाई मूल्य में वृद्धि होता है। उदाहरण:- लगातार बिजली कटौती के मुद्दे की जांच करने के लिए जनरेटर खरीदना।
  •  जमाखोरी, सट्टा और कालाबाजारी:– मूल्यों के भविष्य की अटकले विक्रेताओं वस्तुओं की लगातार जमाखोरी करके कृत्रिम कमी उत्पन्न करने के लिए प्रोत्साहित करती हैं, जिससे लागत में वृद्धि होती हैं।

फिर, वस्तुओं को निर्धारित मूल्य से अधिक दरों पर बेचकर, या विक्रेता वस्तुओं के मूल्यों में और वृद्धि करते हैं।

  •  प्रशासित मूल्यों में वृद्धि:- इस प्रकार के मूल्य न्यूनतम समर्थन मूल्य (Minimum Support Price) होते हैं, जैसे- रेलवे की कीमतें प्रशासन द्वारा निर्धारित की जाती है। अन्य निजी उत्पादकों/ सेवा-प्रदाताओं के माध्यम से उत्पादन/ सेवाओं को प्रदान करने की बढ़ती लागत को लेकर सरकार का दृष्टिकोण, जिसके कारण वस्तुओं और सेवाओं के समग्र मूल्यों में वृद्धि होती हैं।
  • सामयिक (मौसमी) कारक:- भारत में कृषि उत्पादन मानसून पर बहुत अधिक निर्भर रहता है, जिससे बाढ़ और सूखा दोनों के दौरान उत्पादन की लागत बढ़ जाती है।
  • आयात लागत जन्य कारक:- किसी भी अर्थव्यवस्था को सुचारू रूप से चलाने के लिए, कुछ वस्तुएं जैसे कच्चा तेल, मशीनरी, रसायन, आदि महत्वपूर्ण है। इन महत्वपूर्ण कारकों की आयात लागत में वृद्धि जैसे कच्चे तेल, संबंधित उद्योगों के समान की कीमत में समग्र वृद्धि करता है।
  • आय और मजदूरी में वृद्धि की मांग:- उत्पादकों को दृष्टिकोण से, उद्यम के श्रमिकों के वेतन में वृद्धि से प्रति इकाई मूल्य में वृद्धि होगी।
  • मध्यस्थ और मध्यस्थों की भूमिका:- थोक विक्रेताओं जैसे मध्यस्थ अक्सर अपने लाभ में वृद्धि करते हैं जिससे बाजार में कीमतों में वृद्धि होती हैं।
  • समय-समय पर रुपये का मूल्यह्रास:- रुपये के मूल्य में मूल्यह्रास के साथ, आयात एक राष्ट्र के लिए महंगा हो जाता है जो इन आयातो से जुड़ी वस्तुओं के मूल्य के सामान्य स्तर में विधि करता है। इससे महंगाई में वृद्धि होती हैं।

मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने के उपाय:-

  1. भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा कठोर मौद्रिक नीति:- भारतीय रिजर्व बैंक अर्थव्यवस्था में प्रचलित मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने के लिए एक संकुचित मौद्रिक नीति का अनुसरण करता है। इसमें, भारतीय रिजर्व बैंक रेपो दर को बढ़ाता है, और अतिरिक्त मुद्रा को बाजार से अवशोषित करने के लिए सरकारी प्रतिभूतियों की नीलामी करता है। इसे क्रेडिट स्क्वीज एंड डियर मनी पॉलिसी की नीति के रूप में जाना जाता है।
  2. भारत सरकार द्वारा कठोर राजकोषीय नीति:- सरकार निजी खर्च को कम करके, या सरकारी खर्च को कम करके या दोनों प्रक्रिया द्वारा मौद्रिक मुद्रास्फीति को नियंत्रित करती हैं। यह निजी व्यवसायिक करों में वृद्धि कर निजी खर्च को कम करते हैं। यदि लाभ पर प्रत्यक्ष कर बढ़ा दिया जाता है, तो कुल सुलभ आय कम हो जाती है। परिणामस्वरूप, व्यक्तिगत कुल खर्च कम हो जाता है, जो बदले में, बाजार में धन की आपूर्ति को कम कर देता है और इसलिए, मुद्रास्फीति नियंत्रित होती हैं।
  1. कठोर प्रशासनिक उपाय जैसे:-
  • आपूर्ति में तेजी लाने के लिए निर्यात पर अस्थायी प्रतिबंध लगाना
  • आपूर्ति में तेजी लाने के लिए आयात शुल्क को लचीला बनाना
  • कालाबाजारी पर कठोर दंड
  • हड़तालों को रोकने और आवश्यक वस्तुओं के भंडारण और वितरण के बुनियादी ढांचे में सुधार के लिए आवश्यक सेवा रख-रखाव अधिनियम(Essential Services Maintenance Act) को लागू करना
  • परिवार नियोजन के माध्यम से जनसंख्या नियंत्रण

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Scroll to Top