लौह स्तंभ(Iron pillar in Hindi/ History of iron pillar.)
दिल्ली के ऐतिहासिक कुतुबमीनार के बारे में आप लोग तो जानते हैं (अगर आप कुतुबमीनार के बारे में नहीं जानते हैं तो bihargovtjobs.in उसके बारे में विस्तार से चर्चा किया गया है), जो ईंट से बनी दुनिया के सबसे ऊंची मीनार माना जाता है। इसी कुतुब मीनार के पास एक विशाल स्तंभ भी हैं, जिसे लौह स्तंभ कहा जाता है। इस स्तंभ के बारे में बहुत कम ही लोग जानते हैं, लेकिन इसका इतिहास बहुत ही पुराना है। और यह स्तंभ रहस्यों से भरा हुआ भी हैं। माना जाता है कि यह स्तंभ 1600 साल से भी पुराना है। इस स्तंभ के सबसे बड़ी खासियत यह है कि यह शुद्ध लोहा से बना है। और सदियों से खुले आसमान के नीचे खड़ा है। लेकिन आश्चर्य की बात ये है की इस पर आजतक जंग नहीं लगा हैं। यह अपने आप में एक बहुत बड़ा रहस्य है।
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Iron pillar in Hindi
- महरौली का लौह स्तंभ, यह स्तंभ दिल्ली में कुतुबमीनार के पास स्थित है । इस लौह स्तंभ में लौह की मात्रा 98% है। और इसमें अभी तक जंग नहीं लगा है। इतिहासकारों के अनुसार यह स्तंभ गुप्त वंश के चंद्रगुप्त द्वितीय का है। कुछ अन्य के अनुसार इसका निर्माण सम्राट अशोक ने अपने दादा चंद्रगुप्त मौर्य की याद में करवाया था।
- कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि इसका निर्माण इसके पहले हो चुका था यह पहले हिंदू एवं जैन मंदिर का हिस्सा था।
- इस स्तंभ पर संस्कृत में जो खुदा हुआ है, उसके अनुसार इसे ध्वज स्तंभ के रूप में खड़ा किया गया था।
iron pillar of Delhi
- इस पर गरूड़ स्थापित करने हेतु इसे बनया गया होगा। इसी कारण इसे ‘गरुड़ स्तंभ’ भी कहा जाता है।
- इसे मथुरा में विष्णु पहाड़ी पर भगवान विष्णु के मंदिर के सामने ध्वज स्तंभ रूप मे लगाया गया था।
- बाद में 1050 में यह स्तंभ दिल्ली के संस्थापक अनंगपाल द्वारा यहां लाया गया।
- यह लौह स्तंभ लगभग 1600 वर्ष से भी अधिक समय से खुले में खड़ा है। और इतने वर्षों बाद भी इसमें जंग नहीं लगा है, यह बात दुनिया भर के लिए आश्चर्य का विषय है।
- इस स्तंभ की ऊंचाई लगभग 735.50 सेंटीमीटर (लगभग 7 मीटर) है जिसमें से 50 सेंटीमीटर यह जमीन के अंदर हैं।
iron pillar kahan hai
- इसका वजन लगभग 6096 किलोग्राम है।
- 1961 में किए गए एक रासायनिक परीक्षण में पता चला कि यह शुद्ध इस्पात कब बना है तथा इस में कार्बन का मात्रक काफी कम है।
- भारतीय रसायन शास्त्री डॉ. बी. बी. लाल के अनुसार इसे गर्म लौह के 20-30 किलो के टुकड़ों को जोड़कर बनाया गया है।
- परंतु आश्चर्य की बात यह है कि इसमें एक भी जुड़ दिखाई नहीं देता है।
- इस को जंग से बचाने के लिए इस में फास्फोरस की मात्रा अधिक एवं सल्फर एवं मैग्नीज की मात्रा कम रखी गई हैं जो की जंग की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाता है।
- इस पर एक पतली परत ऑक्साइड की है जो इस को जंग से बचाने में मदद करता है.
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